(एक) खजूर के वृक्षों की छोटी-सी छाया उस कड़ाके की धूप में मानो सिकुड़ कर अपने-आपमें, या पेड़ के पैरों तले, छिपी जा रही है। अपनी उत्तप्त साँस से छटपटाते हुए वातावरण से दो-चार केना के फूलों की आभा एक तरलता, एक चिकनेपन का भ्रम उत्पन्न कर रही है, यद्यपि अज्ञेय
एक लाठी निकाली और कालिया की मरम्मत कर दी।
धीरे धीरे रूपा और पीपल के पेड़ की दोस्त बढ़ने लगी। जब राजा को इसकी भनक लगी तो वह विचलित हो उठा। रूपा किसी खतरे में न पड़ जाये यह सोच कर उसने जंगल के सभी पेड़ कटवाने का निर्णय ले लिया। राजा के आदेश से सैनिक जंगल में पेड़ काटने पहुंचे पर वह जैसे ही पीपल के पेड़ की टहनियां काटते, पेड़ से नयी टहनियां ऊग आती। सैनिक घबरा गए। तब पीपल के पेड़ ने गरज कर कहा की सालों से वह और उसके साथी इंसानों को सांस लेने के लिए हवा देते आ रहे हैं , और आज यह लोग उन्हें ही ख़त्म करने चले हैं। अगर पेड़ नहीं रहे, तो इंसान भी नहीं बचेंगे। यह पता चलने पर राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने अपना निर्णय वापस लिया और रूपा और पीपल के पेड़ की दोस्ती की फ़िक्र छोड़ दी।
गाड़ी आने के समय से बहुत पहले ही महेंद्र स्टेशन पर जा पहुँचा था। गाड़ी के पहुँचने का ठीक समय मालूम न हो, यह बात नहीं कही जा सकती। जिस छोटे शहर में वह आया हुआ था, वहाँ से जल्दी भागने के लिए वह ऐसा उत्सुक हो उठा था कि जान-बूझ कर भी अज्ञात मन से शायद किसी इलाचंद्र जोशी
एक गाँव में एक किसान रहता था। किसान खेती करने में व्यस्त था तभी उसकी पत्नी वहां आयी और उसके लिए खाना रख कर वहां से घर वापस चली गयी। जब किसान को फुर्सत मिली तो उसने खाना खाने की सोची। पर यह क्या। खाने का बर्तन खाली था। किसान को लगा की उसकी पत्नी ने उसके साथ मज़ाक किया है और वह नाराज़ हो गया। घर जा कर उसने अपनी पत्नी पर बहुत गुस्सा किया। पत्नी को भी कुछ समझ ना आया।
फिर हरी खुद ही घर से निकला और मिठाई की दूकान के सामने पहुँच गया। वह वहां खड़ा हो कर सोचने लगा की बिना पैसे के मिठाई कैसे खायी जाए। कुछ देर बाद उसने देखा की हलवाई दुकान अपने छोटे बेटे को सँभालने दे कर खुद सोने जा रहा है। यह देख कर हरी के दिमाग में एक तरकीब आयी। वह दूकान पर पहुंचा और मिठाई मांगने लगा। इस पर हलवाई के बेटे ने हरी से पैसे मांगे। हरी ने कहा की उसे मिठाई खाने के लिए पैसे देने की ज़रुरत नहीं है। हलवाई के बेटे को हरी की बात का यकीन न आया। हरी ने हलवाई के बेटे से कहा की की वह जाए और अपने पिताजी को बता आये की दुकान पर मिठाई खाने हरी आया है फिर देखते हैं वह क्या कहते हैं। हलवाई के बेटे ने ऐसा ही किया। हलवाई यह सुन कर भड़क गया की उसका बेटा उसे मक्खी के दूकान पर आने जैसी छोटी बात के लिए जगाने आ गया। उसने अपने बेटे को वहां डांट के भगा दिया। हलवाई के बेटे ने फिर हरी से कुछ न कहा। हरी ने मनपसंद मिठाई खायी और वहां से खिसक लिया।
बहुत-से लोग यहाँ-वहाँ सिर लटकाए बैठे थे जैसे किसी का मातम करने आए हों। कुछ लोग अपनी पोटलियाँ खोलकर खाना खा रहे थे। दो-एक व्यक्ति पगड़ियाँ सिर के नीचे रखकर कम्पाउंड के बाहर सड़क के किनारे बिखर गए थे। छोले-कुलचे वाले का रोज़गार गर्म था, और कमेटी के नल मोहन राकेश
हिरनी गीदड़ के पीछे click here दौड़ने लगी। गीदड़ अपने प्राण लेकर वहां से रफूचक्कर हो गया।
ऐसा करते करते चुनमुन के बच्चे आसमान में उड़ने लगे थे।
एक झोंपड़े के द्वार पर बाप और बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए थे और अंदर बेटे की जवान बीवी बुधिया प्रसव-वेदना में पछाड़ खा रही थी। रह-रहकर उसके मुँह से ऐसी दिल हिला देने वाली आवाज़ निकलती थी, कि दोनों कलेजा थाम लेते थे। जाड़ों प्रेमचंद
रानी ने शायरा की बात मान कर पूरे गाँव में घोषणा करा दी। दिवाली वाली रात को पूरे गाँव में अँधेरा था सिर्फ शायरा के घर में दिए जल रहे थे। तभी शायरा के घर में दरवाज़ा खटका। शायरा ने दरवाज़ा खोला और उसे जैसी उम्मीद थी उसने सामने देवी लक्ष्मी को खड़ा पाया। देवी लक्ष्मी ने शायरा और उसके परिवार को हमेशा धनवान रहने आशीर्वाद दिया अंतर्ध्यान हो गयीं। इसके बाद शायरा ने आतिशबाजी चला के सब को अपने अपने घर रोशन कर लेने का इशारा दिया
जंगल में सुंदर-सुंदर हिरण रहा करते थे। उसमें एक सुरीली नाम की हिरनी थी। उसकी बेटी मृगनैनी अभी पांच महीने की थी। मृगनैनी अपनी मां के साथ जंगल में घूमा करती थी।
लाइव, इसराइल: बंधकों की रिहाई को लेकर प्रदर्शन और हड़ताल
एक महीने बीता पर कोकिला के कंठ से आवाज़ नहीं निकली। जगतगुरु इसका समाधान पूछने अपने राज्य के एक तपस्वी प्रशांत बाबा के पास गया। वहां प्रशांत बाबा ने उसे समझाया की शंगरीला की खुशहाली का राज़ कोकिला नहीं बल्कि ऋषिराज का दयालु और मेहनती स्वभाव है। प्रशांत बाबा ने जगतसुरु से अपने स्वार्थी स्वाभाव को छोड़ कर कोकिला को वापस लौटाने की सलाह दी। जगतगुरु ने प्रशांत बाबा की बात मानी और कोकिला को ऋषिराज को वापस लौटा दिया। कुछ दिन बाद डोंगरीला भी समृद्ध और खुशहाल राज्य बन गया।